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Bhasha Sangam उडिया भाषा Gbsss Mandloi Ext Delhi 93

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                              हिन्दी साहित्य का इतिहास लेखन परंपरा  हिंदी में साहित्य का इतिहास लेखन की परम्परा की शुरुआत  19 वीं शताब्दी से ही मानी   जाती   है , लेकिन कुछ पूर्ववर्ती रचनाएं मिलती हैं जो कालक्रम व विषय - वस्तु का विवेचन न होने के कारण इतिहास ग्रन्थ तो नहीं लेकिन उनमें रचनाकारों का विवरण है । इन्हें वृत्त संग्रह कहा जा सकता है । इनमें प्रमुख हैं –  1.     चौरासी वैष्णव की वार्ता  (  गोकुलनाथ  ) 2.     दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता   3.     भक्त नामावली  (  ध्रुवदास  ) 4.     भक्तमाल  (  नाभादास  ) 5.     कालिदास हजारा  (  कालिदास त्रिवेदी  ) इतिहास लेखन संबंधी पहली शुरुआत तासी   के ग्रन्थ से हुई जिसमें   ग्रियर्सन , आचार्य शुक्ल आदि ने   कई महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए इसे सही दिशा दी ।    ...
                          हिन्दी सहित्य का काल विभाजन साहित्य के इतिहास का अध्ययन विविध समयों की परिस्थितियों और प्रवृत्तियो के आधार पर किया जाता है, इसलिए काल विभाजन की प्रक्रिया द्वारा प्रत्येक काल की सीमा का निर्धारण किया जाता है | विभिन्न युगों में साहित्यिक प्रवृत्तियों की शुरुआत , उनका उतार चढाव उनकी सीमा का निर्धारण करती हैं ,परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी काल विशेष में जो प्रवृत्तियाँ है , वे एकदम खत्म हो जाती है या उनमे एकदम परिवर्तन आ जाता है. काल विशेष में चलने वाली प्रवृत्तियाँ   कमोबेश  क्षीण होती हुयी विलुप्त होने लगती हैं और अन्य प्रवृत्तियाँ मुख्य रूप धारण करने लगती हैं | कालपरिवर्तन की प्रक्रिया वर्षों तक चलती रहती है किन्तु जब परिवर्तन के कारण प्रवृत्ति स्पष्टरूप से सामाजिक आर्थिक ,साहित्यिक रूप में दिखाई पड़ने लगती है तबसे भिन्न काल मान लिया जाता है,जैसे आधुनिकता की प्रक्रिया का आरम्भ  1757 से ही हो जाता है किन्तु स्पष्ट रूप से 1857 से दिखाई पड़ता है |    ...
           हिन्दी सहित्य का काल विभाजन व नामकरण विवाद साहित्य के इतिहास का अध्ययन विविध समयों की परिस्थितियों और प्रवृत्तियो के आधार पर किया जाता है इसलिए काल विभाजन की प्रक्रिया द्वारा प्रत्येक काल की सीमा का निर्धारण किया जाता है. विभिन्न युगों में साहित्यिक प्रवृत्तियों की शुरुआत , उनका उतार चढाव उनकी सीमा का निर्धारण करती हैं परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी काल विशेष में जो प्रवृत्तियाँ है , वे एकदम खत्म हो जाती है या उनमे एकदम परिवर्तन आ जाता है. काल विशेष में चलने वाली प्रवृत्तियाँ   कमोबेश होती हुयी विलुप्त होने लगती हैं. और अन्य प्रवृत्तियाँ मुख्य रूप धारण करने लगती हैं. हिंदी साहित्य के आरम्भकाल को स्थिर करने की समस्या सदा से रही है. काल-सीमा-निर्धारण के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है. एक ओर जार्ज ग्रियर्सन , मिश्रबंधु , रामकुमार वर्मा आदि इतिहासकार अपभ्रंश भाषा के उत्तरवर्ती रूप को हिंदी का आदिम रूप मानकर उसकी शुरुआत संवत 700 से मानते है. जार्ज ग्रियर्सन ने हिंदी साहित्य का क्षेत्र भाषा की दृष्टि से निर्धारित किया ज...