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सहित्य का काल विभाजन
साहित्य के इतिहास का अध्ययन विविध समयों की परिस्थितियों और
प्रवृत्तियो के आधार पर किया जाता है, इसलिए काल विभाजन की प्रक्रिया द्वारा
प्रत्येक काल की सीमा का निर्धारण किया जाता है | विभिन्न युगों में साहित्यिक
प्रवृत्तियों की शुरुआत, उनका उतार चढाव उनकी सीमा का निर्धारण करती
हैं ,परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी काल विशेष में जो प्रवृत्तियाँ है,
वे एकदम खत्म हो जाती है या उनमे एकदम परिवर्तन आ जाता है. काल
विशेष में चलने वाली प्रवृत्तियाँ कमोबेश क्षीण होती हुयी विलुप्त होने लगती हैं और अन्य
प्रवृत्तियाँ मुख्य रूप धारण करने लगती हैं | कालपरिवर्तन की प्रक्रिया वर्षों तक
चलती रहती है किन्तु जब परिवर्तन के कारण प्रवृत्ति स्पष्टरूप से सामाजिक आर्थिक
,साहित्यिक रूप में दिखाई पड़ने लगती है तबसे भिन्न काल मान लिया जाता है,जैसे
आधुनिकता की प्रक्रिया का आरम्भ 1757 से
ही हो जाता है किन्तु स्पष्ट रूप से 1857 से दिखाई पड़ता है |
इतिहास
के काल विभाजन का आधार एवं उद्देश्य
* विभिन्न प्रकाशित,अप्रकाशित
रचनाओं के साथ ही साथ विद्वानों
द्वारा तमाम आलोचनात्माक व शोधपरक ग्रंथों और रचनाओं व
रचनाकारों का परिचय देने वाली अनेक कृतियों को भी कालविभाजन और नामकरण की आधार
सामग्री के रूप में लिया गया।
* समग्र साहित्य को खंडों, तत्वों,
वर्गों आदि में विभाजित कर अध्ययन को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने
में काल विभाजन सहायक होता है |
* अंग, उपांग तथा प्रवृत्तियों को समझने एवं
स्पष्टता लाने के लिए आवश्यक है|
काल विभाजन के आरंभिक प्रयास
*19वीं सदी से पूर्व विभिन्न कवियों और लेखकों
द्वारा चौरासी वैष्णवन की वार्ता, दो सौ बावन वैष्णवन की
वार्ता, भक्तमाल, कविमाला आदि जैसे कई
ग्रंथों में हिन्दी कवियों के जीवनवृत्त और रचना कर्म का परिचय देकर हिन्दी
साहित्य के इतिहास और कालक्रम को आधार देने के प्रयास किए जाते रहे हैं.
*किंतु हिंदी साहित्य
इतिहास के काल विभाजन के आरंभिक प्रयासों में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण प्रयास गार्सा द तांसी के ‘इस्तवार द
लितुरेत्यूर ऐन्दुई ऐ ऐन्दुस्तानी’, जॉर्ज ग्रियर्सन के ‘द मॉर्डन वर्नाक्यूलर ऑफ हिन्दुस्तान’, मौलवी करीमुद्दीन के ‘तजकिरा-ई-शुअरा-ई-हिंदी’ (तबकातु शुआस) तथा शिवसिंग सेंगर द्वारा लिखित इतिहास ग्रंथ ‘शिवसिंग सरोज’ में किए गए।
*गार्सा द तांसी के ग्रंथ ‘इस्तवार
द लितुरेत्यूर ऐन्दुई ऐ ऐन्दुस्तानी’ को अधिकांश विद्वान
हिंदी का प्रथम इतिहास मानते हैं।
*प्रथम तर्क संगत प्रयास सन 1934 ई.
में मिश्र बंधुओं (पं. गणेश बिहारी मिश्र, डॉ. श्याम बिहारी मिश्र एवं डॉ. शुकदेव बिहारी मिश्र ) द्वारा किया गया ।
क्रम संख्या
|
साहित्य इतिहासकार
|
कालविभाजन
|
टिप्पणी
|
1
|
जार्ज
ग्रियर्सन
सर्वप्रथम
हिन्दी साहित्य का काल-विभाजन करने का प्रयास किया। काल-विभाजन पर अपनी सम्मति
प्रकट करते हुए ग्रियर्सन ने लिखा "सामग्री को यथासम्भव काल-क्रमानुसार
प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। वह सर्वत्र सरल नहीं रहा है और कतिपय
स्थलो पर तो यह असम्भव सिद्ध हुआ है। अतएव वे कवि, जिनके समय मैँ
किसी भी प्रकार स्थिर नहीं कर सका, अन्तिम अध्याय में ..दे
दिये गये हैँ।....प्रत्येक अध्याय सामान्यतया एक काल का सूचक है। भारतीय
भाषा-काव्य के स्वर्णयुग १६वीं १७वीं शती पर मलिक मुहम्मद की कविता से प्रारम्भ
करके व्रज के कृष्णभक्त कवियोँ, तुलसीदास के ग्रन्थों और
केशव द्वारा स्थापित कवियोँ के रीति सम्प्रदाय को सम्मिलित करके कुल ६ अध्याय
हैं जो पूर्णतया समय की दृष्टि से विभक्त नहीं हैं, बल्कि
कवियोँ के विशेष वर्गोँ
की
दृष्टि से बंटे हैं।"
|
1.
चारणकाल ७०० से १३००
ई. तक
2.
पन्द्रहवीं शती का
पुनर्जागरण
4.
व्रज का कृष्ण
सम्प्रदाय
5.
मुगल दरबार
7.
रीति सम्प्रदाय
8.
तुलसीदास के अन्य
परवर्ती
9.
अठारहवीं शताब्दी
10.कम्पनी के शासन
में हिन्दुस्तान
11.महारानी
विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान
12.विविध अशक्त कवि
|
|
2
|
एफ. ई के
वृत्त संग्रहों को आधार मानकर कई अन्य विद्वानों ने भी काल
विभाजन का प्रयास किया है। यहां 'एफ. ई
. के' द्वारा किया गया काल विभाजन उल्लेखनीय है।
|
1.
प्राचीन चारण काव्य : (
1150 - 1400 वि. )
2.
प्राचीन भक्त काव्य : (
1400 - 1550 वि. )
3.
कबीर के उत्तराधिकारी
: ( 1550 - 1750 वि. )
4.
आधुनिक काल : (
1800 वि. से आगे...)
|
|
3
|
मिश्रबंधु
मिश्रबंधुओं
द्वारा अपनी रचना 'मिश्रबंधुविनोद' (1913 में तीन भाग तथा 1929
में चौथा भाग) में हिंदी साहित्य के इतिहास को निम्नलिखित 5
भागों और उपभागों में बांटा गया है|
|
1.आरंभिक
काल :
पूर्वारंभिक
काल : (700 - 1343 वि.)
उत्तरारंभिक
काल : (1344 - 1444 वि.)
2.माध्यमिक काल :
पूर्वमाध्यमिक
काल : (1445 - 1560 वि.)
प्रौढ़
माध्य काल : (1561 - 1680 वि.)
3.अलंकृत काल :
पूर्वालंकृत
काल : (1681 - 1790 वि.)
उत्तरालंकृत
काल : (1791 - 1889 वि.)
4.परिवर्तन काल : (1890
- 1925 वि.)
5.वर्तमान काल : (1925 वि. से अब तक )
|
मिश्रबन्धुओँ
का काल-विभाजन पद्धति की दृष्टि से सम्यक एवँ सरल है परन्तु नामकरण में एकरूपता
का अभाव है, क्योँकि "अलँकृत काल" नाम साहित्य की आन्तरिक प्रवृत्ति अथवा
वर्ण्यविषय अथवा कवियोँ के सम्प्रदाय विशेष का द्योतन करता है; जबकि पहला, दूसरा और चौथा नाम विकासावस्था को
व्यक्त करता है तथा अन्तिम युग विशेष का संकेतमात्र ही देता है। इतना ही नहीं
वरन अपभ्रँश युग को हिन्दी साहित्य का आदिकाल मानना भाषा वैज्ञानिक भूल भी है।
|
4
|
आचार्य रामचन्द्र
शुक्ल द्बारा 1929 में 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' नामक ग्रंथ में किए गए काल विभाजन को ही अब
तक सर्वाधिक प्रमाणिक और तार्किक माना जाता रहा है। यह इतिहाल ग्रंथ मूलत: नागरी
प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर' की भूमिका के रूप में लिखा गया था। उन्होने
सम्पूर्ण हिंदी साहित्य को चार भागों में विभाजित किया है |
|
1. वीरगाथा काल : (1050
- 1375 वि.)
2,भक्ति काल : (1375 - 1700 वि.)
3.रीति काल : (1700 - 1900 वि.)
4.गद्य काल : (1900 वि. से आगे...)
|
*विधेययवादी पद्धति पर विभाजन
*काल विभाजन को सर्वथा नवीन रूप तथा कालों की संख्या सीमित
।
*अधिकांश विद्वानों द्वारा स्वीकृत, स्पष्ट तथा तर्कसंगत काल विभाजन ।
|
5
|
डॉ. राम कुमार वर्मा
1938 में
प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' में डॉ. राम कुमार वर्मा ने हिंदी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन किया
है|
|
1.
संधि काल : (750
- 1000 वि.)
2.
चारण काल : (1000
- 1375 वि.)
3.
भक्ति काल : (1375
- 1700 वि.)
4.
रीति काल : (1700
- 1900 वि.)
5.
आधुनिक काल : (1900
वि. से आगे...)
|
·
केवल वीरगाथा काल को
चारण काल कहा, शेष आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा किए गए
विभाजन के ही अनुरूप।
·
वस्तुत: देखा जाए तो
वीरगाथाएँ चारणों द्वारा ही गाईं जातीं थीं।
·
संधि काल में
स्पष्टता का अभाव ।
|
6
|
डॉ. गणपति चन्द्र
गुप्त ने 1938
में प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य का
वैज्ञानिक इतिहास' (दो भाग) में शुक्ल जी की
मान्यताओं का सतर्क खंडन करते हुए हिंदी साहित्य के इतिहास को कलात्मक ढंग से विभाजित
किया |
|
1.
प्रारम्भिक काल : (1189
- 1350 ई.)
2.
मध्य काल :
·
पूर्व मध्य काल : (1350
- 1600 वि.)
·
उत्तर मध्य काल : (1600
- 1857 वि.)
3. आधुनिक काल : (1857 वि. से आगे...)
|
|
7
|
रमाशंकर शुक्ल रसाल
|
1-बाल्यावस्था
क –पूर्वार्द्ध
ख-उत्तरार्द्ध
2-किशोरावस्था
क –पूर्वार्द्ध
ख-उत्तरार्द्ध
3-युवावस्था
क –पूर्वार्द्ध
ख-उत्तरार्द्ध
|
|
8
|
डा.धीरेन्द्र
|
1-प्राचीनकाल
2-मध्यकाल
3-आधुनिककाल
|
|
9
|
राहुल सांकृत्यायन
|
1-सिद्धसामंत युग
2-सूफीयुग
3-भक्तियुग
4-दरबारीयुग
|
|
10
|
उदय नारायण तिवारी
गोविन्द त्रिगुणायत
महेन्द्रनाथ दुबे
द्वारा
|
1-पृष्ठभूमि –अवहट्ट
2-उन्मेष काल –भाषा
ब्रजबुली
3-पुरानी ब्रजी
,कौरवी[खडी बोली ]
पुरानी अवधी काल
क-पूर्व भाग –ब्रजी व
अवधीकाल
ख-उत्तर भाग –खडी
बोली
|
भाषा की दृष्टि से किया
गया विभाजन
|
11
|
डा. नगेन्द्र
|
1आदिकाल [सातवीं शती
मध्य से चौदहवीं शती मध्य तक ]
2-भक्तिकाल [चौदहवीं
शती मध्य से सत्रहवीं शती मध्य तक ]
3- रीतिकाल [सत्रहवीं
शती मध्य से उन्नीसवीं शती मध्य तक]
4-आधुनिककाल
1-जागरण काल
2-जागरण सुधाराकाल
3-छायावादकाल
4-छायावादोत्तरकाल
क-प्रगति-प्रयोगकाल
ख-नवलेखन काल
|
|
12
|
डा.बच्चन सिंह
|
१-अपभ्रन्शकाल
2-भक्तिकाल
[१४००-१६५०]
3-रीतिकाल[१६५०-१८५]
4-आधुनिककाल [१९५७से
अब तक ]
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